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स्त्रीधन

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स्त्रीधन

भारत में स्त्री को भगवान का दर्जा दिया गया है अर्थात विभिन्न देवी रूपों में स्त्री की पूजा की जाती है परंतु स्त्री की संपत्ति और उस संपत्ति पर स्त्री के अधिकारों के बारे में समाज में बहुत कम महत्व दिया गया है स्त्री धन वह धन है है जिस पर स्त्री का संपूर्ण रूप से अधिकार होता है अर्थात उस संपत्ति की मालिक एकमात्र स्त्री होती है ऐसे स्त्रीधन में विवाह के समय सामाजिक रीति-रिवाजों के आधार पर स्त्री को दिए गए उपहार सामान कपड़े गहने इत्यादि शामिल हैं जो उसके माता-पिता परिजनों पति के माता-पिता परिजनों इत्यादि ने दिए हो इसके अलावा स्त्री ने खुद कमा कर जो धन प्राप्त किया है या जो धन या संपत्ति भरण पोषण में उसे मिली है अथवा अपनी बचत से उसने प्राप्त की हो ऐसी समस्त संपत्ति महिला का स्त्री धन है, महिला के पति,पति के परिजन उसे स्त्रीधन के ट्रस्टी हैं वह ट्रस्टी होने के नाते स्त्रीधन या संपत्ति की देखभाल कर सकते हैं परंतु स्त्री की संपत्ति को को अपने आप में न्यत नहीं कर सकते है अर्थात उसका उपयोग उपभोग नहीं कर सकते है किसी महिला को जब उसका पति अथवा पति के परिजन दहेज के लिए तंग परेशान करते हैं या शारीरिक या मानसिक रूप से क्रूरता का व्यवहार करते हैं मारपीट करते हैं तंग परेशान करते हैं तो स्त्री द्वारा पति या उसके परिजनों के विरुद्ध धारा 498 -A भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करवाया जाता है इसी प्रकार अगर पति या परिजन विवाह के समय स्त्री दिया गया धन हड़प लेते हैं उसके मांगने के बावजूद उसे नहीं देते हैं तो धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है.

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