संविधान के महत्वपूर्ण निर्णयों की शृंखला में आज प्रस्तुत है:- सज्जन सिंह बनाम स्टेट राजस्थान1964 का प्रकरण यह प्रकरण पूर्व में इस शृंखला के प्रथम प्रकरण शंकरी प्रसाद बनाम स्टेट के तथ्यों से ही संबंधित है इस केस में माननीय उच्चतम न्यायालय ने शंकरी प्रसाद केस के सिद्धांतों को लागू किया है इस केस में संविधान के 17 वें संशोधन को चैलेंज किया गया था 17वे संशोधन के अंतर्गत अनुच्छेद 31(A), 32(B) में प्रयुक्त संपत्ति शब्द को परिभाषित किया गया और संपत्ति शब्द को और विस्तृत किया गयासाथ ही इसमें 44 नए भूमि अधिग्रहण कानून बनाए जिन्हें 9वे शेड्यूल में डाला गया जैसा कि शंकरी प्रसाद के केस में बताया गया था कि 9वे शेड्यूल में आने वाले किसी भी कानून को किसी भी कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता अर्थात उनकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है इसे ही इस केस में चैलेंज किया गया था कि यह अनुच्छेद 32 ,226 में दिए मौलिक अधिकारों का हनन है यह संशोधन अनुच्छेद 32 व 226 में दिए गए मौलिक अधिकारों को खत्म कर रहा है एवं इस संशोधन के माध्यम से माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय की शक्तियां छिनी जा रही है साथ ही यह तथ्य भी रखा गया कि भूमि अधिकरण राज्य का विषय है यह राज्य सूची में है 17 वें संशोधन में इसे संसद द्वारा पारित किया गया है जो गलत है क्योंकि संविधान के अनुसार राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है. https://indianlawonline.com
सज्जन सिंह बनाम राजस्थान ऐतिहासिक फैसला
पांच जजों की फुल बेंच द्वारा उपरोक्त तथ्यों पर 3/2 अनुपात में निर्णय दिया जिसमें न्यायालय ने यह बताया कि संसद अनुच्छेद 368 में कोई भी संशोधन कर सकती है अनुच्छेद 13 में दिए गए “कानून” शब्द सामान्य कानून के लिए है यह संविधान संशोधन पर लागू नहीं होता है
13. मौलिक अधिकारों के साथ असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाले कानून।
(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के क्षेत्र में लागू सभी कानून, जहां तक वे इस भाग के प्रावधानों के साथ असंगत हैं, इस तरह की असंगति की सीमा तक शून्य होंगे।
(2) राज्य ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनता या कम करता हो और इस खंड के उल्लंघन में बनाया गया कोई भी कानून उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगा।
(3) इस लेख में, जब तक कि संदर्भ की आवश्यकता न हो, –
(ए) “कानून” में कोई भी अध्यादेश, आदेश, उप-कानून, नियम, विनियमन, अधिसूचना, प्रथा या प्रथा शामिल है जो भारत के क्षेत्र में कानून का बल है;
आक्षेपित अधिनियम द्वारा किए गए संशोधन का उद्देश्य भी वही है। संसद की इच्छा है कि व्यापक और व्यापक अर्थों में कृषि सुधार को भारतीय नागरिकों के एक बहुत बड़े वर्ग के हितों में पेश किया जाना चाहिए जो गांवों में रहते हैं और जिनकी वित्तीय संभावनाएं प्रगतिशील कृषि नीति के अनुसरण से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार, यदि आक्षेपित अधिनियम द्वारा किए गए संशोधन पर सार और सार परीक्षण लागू किया जाता है, तो यह स्पष्ट होगा कि संसद केवल सामाजिक आर्थिक नीति की पूर्ति में किसी भी संभावित बाधा को दूर करने के उद्देश्य से मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है .
न्यायालय ने यह भी निर्णय में बताया कि इस संशोधन अनुच्छेद 32 व 226 के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता है इस प्रकार इस संविधान https://indianlawonline.com//संशोधनके विरुद्ध दायर की गईं इस याचिका को भी खारिज किया गया इसके संपूर्ण तथ्य शंकरी प्रसाद के केस के समान ही है लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इसके से भविष्य के संविधान के बड़े निर्णयों गोरखनाथ बनाम राज्य केसवानंद भारती बनाम राज्य जैसे मील के पत्थर निर्णयों को पारित किए जाने का आधार इसी सज्जन सिंह केस से निकला क्योंकि इस केस में जिन दो जजों ने फैसले के विपरीत निर्णय दिए उन में एक थे जस्टिस एम. हिदायतुल्ला जिन्होंने निर्णय के समय यह कहा कि “मैं निर्णय से तो सहमत हूं पर मैं असहमत भी हूं “उनका विचार यह था कि अनुच्छेद 13 के शब्द कानून संविधान से अलग कैसे है? क्या संविधान निर्माण कर्ताओं ने मौलिक अधिकार ऐसे ही बना दिए?क्या मौलिक अधिकार इतने हल्के है जिनमे कभी भी संशोधन किया जा सकता है? क्या संविधान संशोधन अनुच्छेद 13 के दायरे में नहीं आ सकता?इन्हीं सभी विषयों पर आगे चलकर ओर विचार-विमर्श हुआ और जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह के इन विचारों से केशवानंद भारती व गोलखनाथ के निर्णयों में इन विचारों का सहारा लिया गया और शंकरी प्रसाद व सज्जन सिंह के केसों में दिए गए निर्णयों में बदल दिया गया इस प्रकार सज्जन सिंह का केस शंकरी प्रसाद के केस के समान ही रहा परंतु इस केस से भविष्य के संविधान संशोधनों के लिए एक पृष्ठभूमि बनी इसलिए यह के सविधान के निर्णयों में अपना अलग स्थान रखता है इस केस के महत्वपूर्ण बिंदु निम्न रहे.
सज्जन सिंह बनाम राजस्थान ऐतिहासिक फैसला
निर्णय PDF FILE
इस केस के महत्वपूर्ण बिंदु निम्न रहे.क्या संसद उस हद तक जा सकती है,कि
पहले संशोधन और नौवीं अनुसूची को अधिनियमित किया और अब
जब उसने इसमें 44 और कृषि कानून जोड़े? संविधान के अनुच्छेद 13 (1 )व 13 (2 )में यह प्रावधान किए गए हैं कि कोई कानून या विधि मौलिक अधिकारों को कम नहीं कर सकती तो फिर संविधान के मौलिक अधिकारों में संपत्ति का अधिकार दिया गया है उसमें संशोधन कैसे किया जा सकता है?या उसे समाप्त कैसे किया जा सकता है?