संसद में अविश्वास प्रस्ताव:—– लोकसभा में वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध विपक्ष सरकार द्वारा अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा वह वोटिंग की दिनांक व समय अभी निर्धारित नहीं किया गया है .
क्या है अविश्वास प्रस्ताव???—– देश में जिसकी सरकार होती है उसे संसद में सांसदों की संख्या बल के हिसाब से बहुमत प्राप्त होता है इसी संख्या बल के आधार पर सरकार सत्ता में रहती है परंतु अगर किसी सरकार को संसद में बहुमत हासिल नहीं हो तो वह सरकार सत्ता में बनी नहीं रह सकती, ऐसी सरकार गिर जाती है फिर चाहे वह एक वोट से अथवा 100 वोट से गिरे,कोई फर्क नहीं पड़ता संसद में सरकार को निर्धारित बहुमत में होना आवश्यक है । जब विपक्षी दलों या किसी संसद सदस्य को ऐसा लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो बहुमत की जांच हेतु अविश्वास प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत किया जाता है सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है ..? अथवा नहीं..? इसलिए लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का नियम बनाया गया है संविधान में इसके बारे में कोई विशेष प्रावधान नहीं है यह एक संसदीय प्रक्रिया है और संसद के नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाती है लोकसभा में नियम 198 के तहत मंत्रीपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव के नियम बने हुए हैं इसलिए लोकसभा मे या स्पीकर को इसकी सूचना देनी पड़ती है फिर सांसद द्वारा अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है ऐसे प्रस्ताव को सदन के 50 सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है फिर इस प्रस्ताव पर चर्चा और वोटिंग की दिनांक तय होती है,चर्चा के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग करवाई जाती है अगर संसद के अधिकतम सदस्य अगर इसका समर्थन करते हैं तो प्रस्ताव पारित हो जाता है और सरकार गिर जाती हैं वहीं सरी ओर यदि प्रस्ताव के विरुद्ध अधिक समर्थन मिलता है तो प्रस्ताव गिर जाता है और सरकार बनी रहती है .
यह एक संसदीय प्रक्रिया है भारत में 1963 में प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार के विरुद्ध पहला अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था जिसमें जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने बहुमत हासिल कर लिया था व उनकी सरकार बनी रही थी . **क्या प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में भाग लेंगे????:——सामान्य रूप से अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा के दौरान सभी दलों के सांसद, राज्यों व देश के बारे में प्रश्न किया करते हैं सरकार की ओर से अन्य मंत्री गणों के साथ -साथ ही प्रधानमंत्री भी चर्चा के दौरान विपक्ष के प्रश्नों का जवाब देते हैं ऐसी परंपरा रही है वर्तमान में संसद की कार्रवाई ठप होने का कारण यह है कि विपक्ष की मांग है कि मणिपुर मामले में प्रधानमंत्री संसद में आकर जवाब दें….. केंद्र सरकार का कहना है कि मणिपुर मामले में गृहमंत्री विपक्ष को जवाब देंगे….. दोनों अड़े हैं…….संसद ठप है….
ऐसे में प्रधानमंत्री को बोलने के लिए कैसे मजबूर किया जाए???मंत्री परिषद का प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा पर विपक्ष को जवाब देना पड़ता है विपक्ष की रणनीति के तहत अविश्वास प्रस्ताव भी उसी का एक हिस्सा है ताकि अविश्वास प्रस्ताव के बहाने विपक्ष मणिपुर मामले पर एक लंबी बहस कर सकें,और प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए विवश होना पड़े लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध प्रस्तुत ये अविश्वास प्रस्ताव अब तक संसद में प्रस्तुत होने वाला 28 वॉ प्रस्ताव होगा. मतलब अब तक संसद में कुल 27अविश्वास प्रस्ताव पेश हो चुके है,पर मजे की बात यह है कि इससे पूर्व 27 बार अविश्वास प्रस्ताव मौजूदा सरकार के विरुद्ध लाए गए हैं परंतुउनमे से एक भी सरकार अविश्वास प्रस्ताव में नहीं गिरी है पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के सरकार के विरुद्ध अब तक प्रस्तुत 27 अविश्वास प्रस्ताव में से 15 प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए पीवी नरसिम्हा राव, लाल बहादुर शास्त्री के विरुद्ध तीन तीन बार, मोरारजी देसाई के विरुद्ध दो बार, नरेंद्र मोदी के विरुद्ध एक बार (उक्त को माने तो दो बार) इसके अलावा नेहरू जी,राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेई सरकार के विरुद्ध एक- एक बार अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है अब अविश्वास प्रस्ताव से तो आज तक कोई सरकार नहीं गिरी परंतु बड़ा मजेदार विषय है कि सरकारों के खुद के विश्वास प्रस्ताव के कारण 3 बार सरकार गिर चुकी है मतलब कोई सरकार अपने ही समर्थन में विश्वास लाई कि उसे लोकसभा में विश्वास प्राप्त हैं परंतु वोटिंग के दौरान तीन बार ऐसा देखा गया कि ऐसी सरकारें परास्त हो गई और गिर गई इसमें भी विचित्र संयोग और याद रखने वाली बात है कि वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई (एनडीए की सरकार )का विश्वास प्रस्ताव मात्र 1 वोट से गिर गया और सरकार चली गई थी इसके अलावा 1990 में वी.पी नरसिंगा राव की सरकार, वर्ष 1997 में एच डी देवगौड़ा कि सरकार विश्वास प्रस्ताव की वोटिंग में गिर गई। वर्तमान में आंकड़ों की दृष्टि से मोदी सरकार पर कोई संकट नहीं है क्योंकि लोकसभा में एनडीए के कुल 333 सांसद है जिनमें से 301 भाजपा,12 शिवसेना शिंदे गुट,6 जनशक्ति पार्टी, तीन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,11 अन्य व कुल 333 सांसद है प्रस्ताव के समर्थन में जो विपक्षी है उनके सांसदों की कुल संख्या 143 है एवं अन्य ना समर्थन में है ना विरोध में है ऐसे 64 सांसद है इस प्रकार मोदी सरकार के पास में पर्याप्त संख्या बल उपलब्ध है.