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श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य .

श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य . श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य .
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श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य .

हमारे संविधान निर्माताओं ने हमारे भारत के महान संविधान को बहुत ही मेहनत और लगन के साथ इसकी भूत और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक उत्कृष्ट संविधान हमें दिया है संविधान के बारे में जब हम पढ़ते हैं तो प्रमुख रूप से संविधान संशोधन, मौलिक अधिकारों, संविधान की प्रस्तावना, संविधान का मूलभूत ढांचा, आदि विषयों को पढ़ने में अधिक रूचि होती है संविधान में हमारे मौलिक अधिकारों को व्यक्तित्व विकास व सामाजिक विकास के लिए सर्वोपरि माना गया है और मौलिक अधिकारों को एक पारलौकिक शक्ति प्रदान की गई है संविधान के मूलभूत ढांचे व प्रस्तावना को अपरिवर्तनीयता प्रदान की गई है  इन सब को विस्तार में समझने और जानने के लिए हमें संविधान से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में जानना पड़ेगा हमारे भारतीय संविधान से जुड़े देश के कुछ महत्वपूर्ण फैसलो के विवेचन करने के लिए एक आज से एक श्रृंखला शुरू की जा रही है जिसकी पहली कड़ी के अंतर्गत हम आज श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले का विवेचन करेंगे.https://indianlawonline.com/%e0%a4%9c%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%a4-bail/

  इस मामले के महत्वपूर्ण बिंदु निम्न थे —- अनुच्छेद 13 (2) मौलिक अधिकारों के साथ असंगत “कानूनों” को प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद 368 को प्रभावित नहीं कर सकता क्योंकि अनुच्छेद 13 (2) में “कानून” शब्द है।संसद और भारत के संविधान में अन्य बातों के साथ-साथ अनुच्छेद 31A और 3IB सम्मिलित करना अधिकारातीत और असंवैधानिक है अनुच्छेद 13(2) के निषेध के अंतर्गत आता है जो यह प्रदान करता है कि “राज्य इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनने या कम करने वाला कोई कानून न बनाएं और इस खंड के उल्लंघन में बनाया गया कोई भी कानून उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगा। अनुच्छेद 13 के संदर्भ में “कानून” का अर्थ सामान्य विधायी शक्ति के प्रयोग में बनाए गए नियमों या विनियमों से लिया जाना चाहिए, न कि संवैधानिक शक्ति के प्रयोग में किए गए संविधान में किए गए संशोधनों के परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 1 3 (2)अनुच्छेद के तहत किए गए संशोधनों को प्रभावित नहीं करता है।संवैधानिक संशोधन का मामला है, और इस तरह यह संसद की विशेष शक्ति के अंतर्गत आता हैhttps://indianlawonline.com/%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%be-498-a-section-498-a/

श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य .

श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया यह देश का पहला मामला था जिसमें देश के पहले संविधान संशोधन को चैलेंज किया गया था दिनांक 5-10 -1951 को भारत की सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की खंडपीठ नें श्री शंकरी प्रसाद देव सिंह की याचिका को खारिज कर दिया था माननीय जज साहब श्री एम पतंजलि,श्री हीरालाल (सी. जे), श्री बी के मुखर्जी, श्री एन चंद्रशेखर अय्यर की खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई की और सुनवाई के पश्चात शंकर प्रसाद सिंह देव की याचिका को खारिज किया था . 

 संविधान के निर्माताओं ने जब संविधान का निर्माण किया था तो बहुत से ऐसे विषय थे जिनके बारे में संविधान में कुछ प्रावधान होना रह गए थे समय ओर आवश्यकताओं के मध्येनजर आज तक संविधान में संशोधन होते ही जा रहे हैं 1950 में संविधान लागू हुआ था उस दौरान देश में जमीदारी प्रथा बहुत प्रभावशाली थी कुछ लोगों के पास बहुत सारी जमीनें हुआ करती थी इन्हे जमींदार कहाँ जाता था इन्हे जमिनो का मालिक बना दिया जाता था और बाकी सब उस जमीन के  मजदूर कहलाते थे कुछ मुट्ठी भर प्रभावशाली लोगों के पास जमीदारी हुआ करती थी जिनके पास बहुत बड़ी मात्रा में जमीनें हुआ करती थी और बाकी आम लोग उसमें मजदूरी के रूप में कार्य करते थे 1950 में जो संविधान बना उसमें संपत्ति का अधिकार दिया गया था अब जब संपत्ति का अधिकार संविधान में मूलभूत रूप से दिया गया था तो इन जमीदारों को इनकी संपत्ति से कोई बेदखल नहीं कर सकता था एक ही व्यक्ति के पास में हजारों सैकड़ों किलोमीटर में फैली जमीनें हुआ करती थी सरकार को विकास के कार्यों के लिए जमीनों की आवश्यकता पड़ी जिसमें आमजन की सुविधाओं के लिए,खेती के कार्यों,अस्पताल,स्कूल, बैंक, सरकारी कार्यालय,सड़कों का निर्माण,इत्यादि करवाना था और भूमि की आवश्यकता थी तब संविधान में दिए गए संपत्ति के अधिकार के कारण जमीदारों से उनकी उनकी जमीन सरकार नहीं ले सकती थी विकास के कार्यों के लिए ऐसी जमीनों के अधिग्रहण करने की आवश्यकता थी परन्तु सविधान मे दिए सम्पति के मुलभुत अधिकार के चलते सरकार किसी की सम्पति का अधिग्रहण नहीं कर सकती थी.https://indianlawonline.com/defamation-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf/

इसलिए संसद ने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन ओर भूमि सुधार व आर्थिक सुधारो को ध्यान मे रखते हुऐ 1951में सविधान मे पहला संसोधन किया जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 31–Aऔर अनुच्छेद 31–B जोडे गये अनुच्छेद 31–A मे यह प्रावधान रखा गया की सरकार किसी की भी जमीन का अधिग्रहण कर सकेगी ओर अनुच्छेद 31–B मे यह प्रावधान किया गया की कोई भी क़ानून जिसे 9वें schedule मे डाला जायेगा उस पर सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट कहीं भी चेलेंज नहीं किया जा सकेगा मतलब वह फाइलन होगा कहीं भी कोई मुकदमा नहीं हो किया जा सकेगा ओर संसद ने इस 9schedule को भी बनाकर उसमे  अनुच्छेद 31–A को शामिल कर लिया अब तक सविधान के 8 schedule थे इस संसोधन से कुल 9 schedule हो गये अब इस संसोधन से जमींदारों ओर भूमिदारों मे हड़कप मच गया इन्हे अपनी जमीने हाथ से जाती दिखाई देने लगी ओर ये सभी अपने अपने राज्यों की हाईकोर्ट की शरण मे चले गये की ये सविधान संसोधन ग़लत है, असवेधानिक है, विधि विरुद्ध है इसका सबका यह कहना था कीसविधान के अनुच्छेद 13(1)मे यह प्रावधान है की मूल अधिकारो से असंगत या उनका अल्पकरण करने की सभी विधियां उस मात्रा तक शून्य मानी जाएगी जिसतक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत है अर्थात जो विधि मूल अधिकारों को छीनती है या इन्हे कम करती है वे शून्य मानी जाएगी इसके अलावा अनुच्छेद 13(2) मैं बताया गया है कि राज्य कोई ऐसी विधि नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों में प्रदत्त अधिकारों को छीन की हो या न्यून करती हो ऐसी विधि शून्य मानी जाएगीअनुच्छेद 13(3)मे विधि को बताया गया है की विधि मे अध्यादेश, आदेश, नियम, विधियां, अधिसूचना, रूढ़ि, प्रथा शामिल है अनुच्छेद 13(4)इसमे बताया गया है की इस अनुच्छेद की कोई भी बात अनुच्छेद 368के अधीन किये गये सविधान संसोधन को लागु नहीं होंगी इसलिए इसी विषय पर प्रमुख रूप से विवाद था कि जब संविधान के अनुच्छेद 13 (1 )व 13 (2 )में यह प्रावधान किए गए हैं कि कोई कानून या विधि मौलिक अधिकारों को कम नहीं कर सकती तो फिर संविधान के मौलिक अधिकारों में संपत्ति का अधिकार दिया गया है उसमें संशोधन कैसे किया जा सकता है?या उसे समाप्त कैसे किया जा सकता है? https://indianlawonline.com/first-information-report-fir/

संविधान में दिए गए संपत्ति के अधिकारों की आड़ लेकर याचिकाए दायर की गई अब जो कि यह संविधान में संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार मूलभूत अधिकार बताया गया था तो बहुत से राज्यों हाई कोर्ट द्वारा इसे संवैधानिक अधिकार बताया गया एवं बहुत से हाई कोर्ट द्वारा उसे इसे असंवैधानिक बताया गया शंकरी प्रसाद देव सिंह बिहार के एक बहुत बड़े जमीदार थे वे भी हाई कोर्ट पहुंचे पटना हाईकोर्ट ने संविधान में प्रदत्त संपत्ति के मौलिक व मूलभूत अधिकार को संवैधानिक मानते हुए उनकी याचिका स्वीकार की इधर बहुत से राज्यों की हाईकोर्ट अलग-अलग फैसले इस संदर्भ में दे रही थी इसलिए यह मामला माननीय सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तब सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा यह संविधान संशोधन है कानून नहीं है सरकार ने संविधान में संशोधन किया है संविधान का अनुच्छेद 13 कानून के बारे में लागू होता है संविधान संशोधन के बारे में नहीं इसलिए यह संविधान संशोधन संसद द्वारा सही किया गया है और संसद द्वारा किये गए किस संविधान संशोधन में सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं दे सकता संविधान के अनुच्छेद 368 की शक्तियां असीमित है अनुच्छेद 13 में कानून शब्द बताया गया है संविधान संशोधन उसमें नहीं आता है इसलिए यह अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के प्रावधानों का भी उल्लंघन नहीं करता है  अनुच्छेद 13 के संदर्भ में “कानून” का अर्थ सामान्य विधायी शक्ति के प्रयोग में बनाए गए नियमों या विनियमों से लिया जाना चाहिए, न कि संवैधानिक शक्ति के प्रयोग में किए गए संविधान में किए गए संशोधनों के परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 13 ( 2)के तहत किए गए संशोधनों को प्रभावित नहीं करता है।इस प्रकार देश के पहले संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज की गई हालांकि इसके पश्चात अन्य संशोधन हमारे संविधान में हुए हैं एवं संशोधन से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण निर्णय माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए हैं इस निर्णय के अंदर अनुच्छेद 13 का जो विवेचन किया गया है उसे आगे अपने फैसलों में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया है उसका विवेचन हम आगे इस संख्या में अन्य महत्वपूर्ण फैसलों में उन सब का विवेचन करेंगे.https://indianlawonline.com/i-p-c-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%af-%e0%a4%a6%e0%a4%82%e0%a4%a1-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%bf/

श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य .

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श्री शंकरी प्रसाद सिंह देव बनाम भारत संघ और राज्य निर्णय PDF FILE

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