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भारतीय संविधान में महिलाओं से सम्बन्धित प्रावधान PDF

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भारतीय संविधान में महिलाओं से सम्बन्धित प्रावधान PDF

भारतीय संविधान में महिलाओं से सम्बन्धित प्रावधान    भारतीय संविधान में भी महिलाओं के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा गया है।ब सामान्य नागरिकों के साथ-साथ महिला वर्ग के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये है, जिनमें प्रमुख प्रकार है-                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    https://youtu.be/3XexgoX_80Q

1. अनुच्छेद 14- विधि के समक्ष समता का अधिकार
सभी को समता का अधिकार है। इसी प्रकार महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर समता का अधिकार प्रदान करता है।

2. अनुच्छेद 15(1)- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विच्छेद का प्रतिषेध – संविधान महिलाओं को भी लिंग, जाति, धर्म, आदि के आधार पर सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है जो एक पुरुष को प्राप्त है।

3. अनुच्छेद 15(3)- अनुच्छेद 15(3) में संविधान स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष उपबन्ध किये जाने का अधिकार प्रदान करता है। राज्य स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष
प्रावधान बना सकते हैं। 4. अनुच्छेद 16- लोक नियोजन के विषय में अवसर की क्षमता- सभी नागरिको की भांति महिलाओं को भी रोजगार व नौकरी के समान अवसर प्रदान होगें ।

5. अनुच्छेद 19- वाक स्वातंत्र्य आदि का अधिकार

महिलाओं को अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त किये जाने का व्यापार करने का, अपनी जीविका चलाने का, उपजीविका चलाने का भारत में कहीं भी रहने का, घूमने-फिरने का आदि के विभिन्न अधिकार धारा (19) के तहत प्राप्त है।

6 .अनुच्छेद 21-प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार – पुरुषों की भांति प्रत्येक महिला को उसके प्राण व दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।

7. अनुच्छेद 22- गिरफ्तारी व निरोध से संरक्षण

किसी भी महिला को गिरफ्तारी की दशा में 24 घण्टों के भीतर ही सम्बन्धित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है। उक्त अवधि से अधिक उसे बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के निरूद्ध नहीं रखा जा सकता है।
8. अनुच्छेद 23 व 24- उपरोक्त अनुच्छेद महिलाओं के विरुद्ध शोषण, दुर्व्यापार, बेगार बलात्संग, कारखानों, फैक्ट्रियों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का नियोजन इत्यादि से बालकों व महिलाओं की रक्षा करता है।

9.अनुच्छेद 39क :-उक्त अनुच्छेद में पुरुष व स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है। पुरुषों व स्त्रियों दोनो का समान कार्यों के लिए समान वेतन हो। यह अनुच्छेद 39 (ग ) में बताया गया है। पुरुषो व स्त्रियों की स्वास्थ्य व आर्थिक आवश्यकता का दुरूपयोग ना हो यह अनुच्छेद 39 (डं) में बताया गया है।

10. अनुच्छेद 42– काम की न्यायसंगत ओर मानवोचित दशाओं एवं प्रसूति सहायता का

उपबंध – इस उपबन्ध में महिलाओं की काम की मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करनेऔर स्त्रियों की प्रसूति सहायता के बारे में उपबन्ध दिये गये है।

11. अनुच्छेद 46 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व समाज में अन्य दुर्बल बगों में शिक्षा व अर्थ सम्बन्धी हितों को प्रोत्साहन देने तथा सामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा करने सम्बन्धी प्रावधान किये गये है। इसी प्रकार संविधान में संविधान के मूल कर्तव्यों में भी भारत के सभी लोगों में धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग आदि भेदभाव से परे समान भातृत्व और समरसता की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐसी प्रथाओं के त्याग के बारे में बताया गया है जो स्त्रियों के सम्मान के
विरुद्ध हो ।

12 अनुच्छेद 243- इस अनुच्छेद में नगरपालिकाओं ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जाति व
अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान किये गये हैं। पूरे देश में व राज्यों में नगरपालिका, पंचायत में महिलाओं को आरक्षण का अधिकार अनुच्छेद 243 प्रदान करता है।

13 अनुच्छेद 17. अस्पृश्यता का अंत उक्त अनुच्छेद के अन्तर्गत

अस्पृश्यता से उपजी किसी नियोग्यता को लागू करना अपराध होगा और विधि के
अनुसार दण्डनीय होगा ।                                                                                   14.अनुच्छेद 226 – अपने अधिकारों की प्राप्ति करने व उसकी पालना करवाने हेतु एवं बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध अधिकार पृच्छा या उत्प्रेषण सम्बंधित रिट के लिए अनुच्छेद 226 के तहत राज्य सरकारों के उच्च न्यायालयों में रिट की जा सकती है।

15. अनुच्छेद 32- इसी प्रकार अनुच्छेद (32) के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों को परिवर्तित
करवाने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में रिट प्रस्तुत की जा सकती है।भारत के संविधान में विभिन्न प्रकार के अधिकार प्रदान किए गए हैं ।जिन्हें सामान्यतया दो भागों में मौलिक व अन्य कानूनी अधिकारों में श्रेणीबध किया जा सकता है ।रीट (WRIT) ऐसा निर्देश या आदेश है जो इन अधिकारों को लागू करने के लिए एक संवेधानिक उपाय के रूप में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए जाते हैं                                                                                                                         उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 और उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के अधीन मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उपाय पर प्रदान करता है रीट के प्रकार                                                                                    (1)बंदी प्रत्यक्षीकरण                                                                                                       (2) परमादेश                                                                                                                      (3)प्रतिषेध                                                                                                                      (4) अधिकार पृच्छा                                                                                                           (5) उत्प्रेषण                                                                                                                  01 . बंदी प्रत्यक्षीकरण:– बंदी प्रत्यक्षीकरण एक रीट है जिसे अवैध रूप से निरुद व्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए जारी किया जाता है यह रीट लोक सेवक द्वारा भी अभिरक्षा के लिए किए गए व्यक्ति को अदालत के सामने पेश करने और अभिरक्षा में लेने के लिए वैद्य कारण बताने का आदेश देती है।                                     (2)परमादेश :- परमादेश की रीट एक अधीनस्थ अदालत सरकार के एक अधिकारी या एक निगम या अन्य संस्था को जारी की जाती है जो कुछ कार्यों या कर्तव्य के प्रदर्शन की कमान संभालती है।                                                                                                       (3) प्रतिषेध:- प्रतिषेध, एक उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र निषेध करने के लिए जारी की गई एक रीट है या उच्च न्यायालय द्वारा तब जारी की जाती है जब मामला निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो निषेधाज्ञा केवल न्यायिक और अर्ध न्यायिक पदाधिकारियों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।                                    (4)अधिकार पृच्छा- अधिकार पृच्छा एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ जारी किया जाता है जो एक सार्वजनिक कार्यालय का धारक है इस रिट के माध्यम से अदालत पूछती है कि वह किस अधिकार से व्यक्ति को उसके दावे का समर्थन करता है इस रिट के माध्यम से अदालत एक सार्वजनिक कार्यालय में किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जांच करती है यह रीट एक व्यक्ति द्वारा एक सार्वजनिक कार्यालय की अवधारणा को रोकता है।                                            (5) उत्प्रेषण :– उत्प्रेषण रिट भी न्यायिक और अर्ध न्यायिक प्राधिकारियों ,न्यायालयों एवं न्यायाधिकरणों के खिलाफ जारी की जा सकती है और उसका अर्थ “सूचनार्थ प्रेषण” यथा जब कोई न्यायाधिकरण बिना अधिकारिता के उसका उल्लंघन करके कार्य करता है औ र कोई अवैध आदेश जारी करता है तो उत्प्रेषण की रीट द्वारा  उसे रद्द किया जा सकता है.  SEE PDF ACT BELOW THE POST

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