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बेटियों का पिता की पैतृक सम्पति पर अधिकार

बेटियों का पिता की पैतृक सम्पति पर अधिकार बेटियों का पिता की पैतृक सम्पति पर अधिकार
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बेटियों का पिता की पैतृक सम्पति पर अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय बेटियों को संपत्ति का अधिकार संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों के अथवा वारिसों के संदर्भ में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 बना था, जिसके आधार पर न्यायालय में उत्तराधिकारी तय होते थे, यहां हिंदू से तात्पर्य केवल हिंदू धर्म के मानने वालों से नहीं है ,अपितु जैन धर्म सिख धर्म तथा बौद्ध धर्म को मानने वालों लोगों से भी है लेकिन वर्ष 2020 में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में बेटियों के लिए एक क्रांतिकारी निर्णय पारित किया जो कि बेटियों का अपने पिता की संपत्ति में अधिकार उत्पन्न करता है ,इस निर्णय के बाद अब बेटियां भी बेटों की भांति अपने पिता की संपत्ति में बराबर की हकदार है ,इस ऐतिहासिक निर्णय से बेटियों को अपना कानूनी हक प्राप्त हुआ इससे पूर्व में हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956 में यह प्रावधान था कि पिता की मृत्यु पर पिता की संपत्ति का वारिस उसका पुत्र होता था चाहे पिता द्वारा किसी प्रकार की कोई वसीयत लिखी गई हो अथवा नहीं लिखी गई हो अर्थात पिता की संपत्ति पुत्र को मिलती थी ,एवं अगर बेटा वारिस नहीं हो तो पिता की संपत्ति पिता के भाइयों के बेटे तथा चचेरे भाई को मिलती थी पुत्री का इसमें अधिकार नहीं था लेकिन 9 सितंबर 2005 में इस नियम में संशोधन किया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि अगर पिता की मृत्यु होती है और उसके द्वारा मृत्यु के पूर्व अपनी संपत्ति का कोई बटवारा या वसीयत नहीं की है तो मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का बराबर साथ रहेगा, इस संशोधन में बेटे के साथ बेटी का भी अधिकार माना गया है लेकिन यह प्रावधान वर्ष 2005 के बाद के लिए प्रभावी रहा इससे पूर्व अर्थात 1956 से 2005 तक इस अधिनियम में संशोधन से पूर्व यह प्रावधान लागू नहीं थे इसके पश्चात वर्ष 2020 में एक और संशोधन इस अधिनियम में हुआ और इसमें बेटे और बेटियों का अधिकार पिता की संपत्ति में 1956 से मान लिया गया है अर्थात अब भी इस अधिनियम में बेटियों के साथ पूरा न्याय नहीं हुआ था ।  वर्ष 1956 से पूर्व की स्थिति अभी भी बेटों के पक्ष में थी अर्थात 1956 से पूर्व पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार नही था मगर अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय 2020  ने सारे बंधन व सभी बाधाए तोड़ दी और बेटियों को बेटे के बराबर पिता की संपत्ति में उनका हक दिलवाया, साथ ही यहां आप यह भी समझे कि यह अधिकार उस बेटी को भी है चाहे वह नाबालिक हो या बालिक ,अविवाहित हो विवाहित हो अथवा विधवा हो हर महिला को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार अपने आप जन्म से है अर्थात यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है बेटियों के लिए विशेष खबर यह भी है कि अगर किसी पिता के बेटा नहीं है तो पिता की सारी संपत्ति उसकी बेटी को मिलेगी माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय बेटियों के लिए एक वरदान है बस इस अधिकार को भली-भांति समझने में कानूनी रूप से प्राप्त करना जरूरी है उत्तराधिकार अधिकार के लिए पिता का जीवित होना या ना होना कोई महत्व नहीं रखता है पिता जीवित हो अथवा नहीं हो बेटी का अधिकार उसकी संपत्ति पर है महिलाएं अपने इस अधिकार को समझे अगर इस अधिकार से वंचित है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के क्रांतिकारी निर्णय 2020 के बाद आपको इस अधिकार को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता 11 अगस्त 2020 को देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदरणीय जज एमआर शाह न्यायधीश अब्दुल नजीर तथा न्यायाधीश अरुण मिश्रा की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने बेटियों के अधिकारों को सर्वोच्च मानते हुए यह ऐतिहासिक निर्णय सुनाया

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